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ट्रेनों में मिलने वाले कंबल इतने दिनों में धुले जाते; रेल मंत्री के बयान ने सबको कर दिया हैरान, AC कोच के यात्री जरूर पढ़ लें यह खबर

Indian Railway Blankets Washing

Indian Railway Trains Blankets Washed in How Many Days

Indian Railway Blankets Washed: देश में भारतीय रेलवे के जरिए रोजाना लाखों लोग अपनी यात्रा करते हैं। ट्रेनों में यात्रियों की सहूलियत के हिसाब से तीन तरह के कोच लगाए गए होते हैं। जनरल कोच, स्लीपर कोच और AC कोच में यात्री यात्रा का विकल्प चुन सकते हैं। जनरल कोच में यात्रा करने के लिए ज्यादा पैसे नहीं लगते। क्योंकि यहां सीटें रिजर्व नहीं होती हैं और यात्रियों को पक्के तौर से बैठने और लेटने की सुविधा नहीं मिलती है।

जबकि स्लीपर कोच में यात्रा जनरल से थोड़ी महंगी हो जाती है। क्योंकि यहां सीटें रिजर्व होती हैं। भारतीय रेलवे की तरफ से स्लीपर कोच में पक्के तौर से बैठने और लेटने की सुविधा मिल जाती है। वहीं स्लीपर कोच से थोड़ा ऊपर उठने पर नंबर आता है AC कोच का। ट्रेनों में AC कोच सबसे महंगा होता है। इसमें भी 3 विकल्प होते हैं। (फ़र्स्ट एसी, सेकेंड एसी और थर्ड एसी) तीनों में पैसों का थोड़ा-थोड़ा अंतर होता है। AC कोच में भारतीय रेलवे की तरफ से उसी हिसाब से सुविधा भी मिलती है।

यात्रा के दौरान यात्रियों को रेलवे की तरफ से बेड रोल (Bedroll) की नि:शुल्क सप्लाई की जाती है। बेड रोल में दो चादरें, एक कंबल, एक तकिया होता है। लेकिन जो चादर और कंबल एसी कोच में मिलते हैं। क्या वह धुले हए होते हैं या नहीं? भारतीय रेलवे में चादरों और कंबलों की धुलाई कितने दिन में होती है? क्योंकि अक्सर यात्रियों की शिकायतें आती हैं बेड रोल साफ सुथरे नहीं होते। खासकर कंबलों के साफ नहीं होने की शिकायतें ज्यादा होती हैं। फिलहाल अब खुद रेल मंत्री ने इस बारे में संसद में बयान जारी किया है।

Indian Railway Trains Blankets Washed in How Many Days

 

रेल मंत्री के बयान ने सबको कर दिया हैरान

ट्रेनों में मिलने वाले कंबलों की सफाई को लेकर रेल मंत्री के बयान ने सबको हैरान कर दिया है। अब आप ही बताइये कि, आप अपने घरों में रोजाना उपयोग होने वाले कपड़ों, कंबलों और चादरों को कितने दिनों में धुल देते हैं। शायद कंबलों और चादरों को हफ्ते भर में धो देते होंगे। ऐसा तब जब आप निजी तौर से उनका यूज कर रहे हैं। लेकिन आप हैरान होंगे कि, भारतीय रेलवे में ट्रेनों के कंबलों की सफाई महीने में सिर्फ एक बार ही की जाती है। जबकि वे कंबल सार्वजनिक तौर से रोजाना उपयोग किए जाते हैं।

ट्रेनों में बदलते हुए यात्री इनका उपयोग करते हैं। ऐसे में महीने में औसतन 30 यात्री तो एक कंबल का इस्तेमाल कर ही लेते होंगे। वहीं 30 दिन पूरे होने पर रेलवे के कंबल धुल ही जाएंगे, यह भी कोई जरूरी नहीं है। मसलन आप ऐसे कंबलो को छूने से भी बचेंगे। हालांकि, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया है कि ट्रेन में यात्रियों को दिए जाने वाले कंबलों को महीने में कम से कम एक बार धोया जाता है। रेल मंत्री ने संसद में तब यह बयान दिया। जब लोकसभा में राजस्थान के गंगानगर से कांग्रेस पार्टी के सांसद कुलदीप इंदौरा ने रेल मंत्री से सवाल किया कि, 'क्या ट्रेनों के कंबल महीने में केवल एक बार धोए जाते हैं जबकि यात्री तो बेसिक स्वच्छता स्टैंडर्ड के लिए भी भुगतान कर रहे हैं।

इसके लिखित जवाब में रेल मंत्री वैष्णव ने लोकसभा में बताया कि महीने में कम से कम एक बार ट्रेनों के कंबलों की धुलाई अवश्य की जाती है। वहीं ट्रेन में जो चादर और तकिये मिलते हैं, वो चादर रोजाना धुलते हैं और तकियों के कवर भी रोज धुले जाते हैं। लेकिन कंबलों की धुलाई एक महीने में एक बार होती है। अश्विनी वैष्णव ने संसद सदस्यों को यह भी बताया कि बेड रोल में कंबल के साथ दो चादरों की सप्लाई की जाती है। एक चादर बर्थ पर बिछाने के लिए होता है जबकि दूसरा चादर कंबल पर कवर के रूप में उपयोग के लिए।

Indian Railway Blankets Washed

 

रेलवे के अधिकारी बताते हैं दूसरा चादर हमेशा कंबल से चिपका लेना चाहिए और चादर वाली तरफ से ओढ़ना चाहिए. ऐसा इसलिए ताकि दूसरे यात्रियों का उपयोग किया गया कंबल आपके शरीर से सीधे संपर्क में नहीं आए। उल्लेखनीय है कि AC क्लास में बेड रोल रेलवे की तरफ से दिया जाता है। इसमें गंदे चादरों और कंबलों की सप्लाई की खबरें अक्सर सामने आती हैं।

Indian Railway Blankets Washing

 

लोग रेल मंत्री और रेलवे को घेर रहे

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर ट्रेनों में मिलने वाले कंबलों पर बहस तेज हो गई है। ग रेल मंत्री और रेलवे को घेर रहे हैं। रेल मंत्री के बयान पर कोई कह रहा है कि, वो कौन से लकी यात्री होते होंगे जिन्हें पहली बार के धुले हुए कम्बल नसीब होते होंगे। कोई कह रहा- यह कैसी दुर्दशा है? क्या जनता के स्वास्थ्य और स्वच्छता का यही स्तर है? एक ओर बुलेट ट्रेन की बातें, दूसरी ओर कंबल धोने तक की लापरवाही! शर्मनाक। कोई कह रहा- क्या गारंटी है कि महीने में एक बार कंबल धुले ही जाते हैं। कोई कह रहा है कि, यात्री से जब पैसा लिया जाता है तो कम से कम वो इन सब चीजों को लेकर कोई कॉम्प्रोमाइज नहीं करना चाहता।

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